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जहां सड़कें खत्म होती हैं, वहां से शुरू होते हैं सपने

जहां सड़कें खत्म होती हैं, वहां से शुरू होते हैं सपने



सादा जीवन, उच्च विचार


एक ऐसा वाक्य जो किताबों में खूब पढ़ाया जाता है, लेकिन इसे असल में जीते हैं हमारे पहाड़ों के लोग। यहां के लोग एक साधारण जीवन जीते हुए भी बड़े सपने देखते हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर, एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए और तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए ये लोग हमें सिखाते हैं कि कम में खुश रहना और आगे बढ़ने का जज़्बा क्या होता है। पर क्या इनकी जिंदगी वाकई इतनी आसान है? चलिए जानते हैं उनके संघर्षों की कहानी, जहां सड़कें कम हैं लेकिन सपने ऊंचे हैं।


जहां सड़कें खत्म होती हैं, वहां से शुरू होते हैं सपने



कनेक्टिविटी का संकट: "सड़कें कहीं खो गईं"


पहाड़ों की सुंदरता जितनी मनमोहक है, वहां पहुंचना उतना ही मुश्किल। देश में जहां हाईवे और एक्सप्रेसवे की चर्चा होती है, वहीं हमारे पहाड़ों में कई गांव अब भी सड़क से कोसों दूर हैं।

सोचिए, एक बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक ले जाने के लिए चार लोग डोली उठाए घंटों पैदल चलते हैं।

बारिश में सड़कें कीचड़ में तब्दील हो जाती हैं, और सर्दियों में बर्फ का अम्बार रास्ते को लील जाता है।

बिजली और इंटरनेट तो दूर की बात है। यहां ऑनलाइन क्लासेस और वर्क फ्रॉम होम का सपना अब भी सपना ही है।


फिर भी लोग हार नहीं मानते। एक गांव से दूसरे गांव तक पैदल या खच्चरों की मदद से सामान और ज़रूरतें पूरी की जाती हैं। इन संघर्षों के बीच पहाड़ों के लोग हर मुश्किल को मुस्कुराते हुए झेलते हैं।


जहां सड़कें खत्म होती हैं, वहां से शुरू होते हैं सपने



शिक्षा का संघर्ष: मीलों का सफर, सपनों की पढ़ाई


कहते हैं, अगर जज़्बा हो तो कोई बाधा बड़ी नहीं होती। पहाड़ के बच्चों से बेहतर इसे कौन समझ सकता है?

बंसी, 12 साल का लड़का, रोज़ाना 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाता है। ठंड हो या बारिश, वो रुकता नहीं।

स्कूलों में पढ़ाई के साधन सीमित हैं। कई गांवों में तो अब भी सिर्फ एक टीचर है, जो सभी कक्षाओं को पढ़ाता है।

कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर जाना एक बड़ी चुनौती है।


फिर भी, यहां के बच्चे पढ़ाई छोड़ते नहीं। कुछ छोटे ट्यूशन लगाकर पैसे कमाते हैं, तो कुछ अपनी किताबों को दूसरों से शेयर करके पढ़ते हैं। उनके सपने बड़े हैं और उन्हें पूरा करने की ललक और भी बड़ी।




साधारण जीवन, उच्च विचार का असली मतलब


आपने अमीर देशों की "मिनिमलिस्ट" लाइफस्टाइल के बारे में सुना होगा। पहाड़ों में तो ये जीवन की जरूरत है।

यहां के लोग जरूरत से ज़्यादा कभी नहीं लेते। पानी के लिए बर्फ को पिघलाते हैं, खाना घर के खेतों से आता है और लकड़ियां जंगल से।

"जहां ज़मीन कम और सपने बड़े होते हैं, वहां हर एक संसाधन की कदर की जाती है।"

परिवार और समुदाय के लोग एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। त्योहारों में सामूहिक पकवान बनाना, शादी-ब्याह में सबकी भागीदारी – ये रिश्तों की गर्माहट को दिखाता है।


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निष्कर्ष: पहाड़ के लोग, हमारी असली प्रेरणा


आज जब हम शहरों की भागदौड़ में 'स्टेटस' और 'सुविधाओं' के पीछे भागते हैं, तब पहाड़ों के लोग हमें सिखाते हैं कि खुश रहना परिस्थितियों पर नहीं, बल्कि सोच पर निर्भर करता है।

कनेक्टिविटी की कमी, शिक्षा के लिए संघर्ष और संसाधनों का अभाव – ये चीजें उन्हें रोकती नहीं।

वे हमें दिखाते हैं कि कम में खुश कैसे रहना है, और रिश्तों की कीमत कैसे समझनी है।


तो अगली बार जब आप किसी पहाड़ी गांव में जाएं, वहां के लोगों से सीखिए। उनकी सादगी और संघर्ष को महसूस कीजिए। क्योंकि ये लोग हमें वही सिखाते हैं, जो दुनिया की सबसे बड़ी किताबें नहीं सिखा पातीं – "सादा जीवन, उच्च विचार।"


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